आज सदन ने ६० साल पूरे किये हैं
इस अवसर पर विशेष बैठक बुलाई गयी
सांसदों के बौद्धिक कथनों को सुनकर मैं हैरान हो गया
अरे एक ही दिन में ये परिवर्तन कैसे आ गया
कल ही तो सभी एक ६३ साल पुराने कार्टून पर गुर्रा रहे थे
आज वही संसद की गरिमा की बात कर रहे थे
हैरान परेशान मैंने चैम्प को फोन लगाया
पूछा भाई एकता को देखा
कौनसी एकता: मुंबई वाली या लखनऊ वाली
मैंने कहा नहीं यार दिल्ली वाली
दिल्ली में हम किसी एकता को जानते है क्या?
नहीं भाई आज ही दिखी है संसद में
संसद में?
हाँ भाई संसद में, वो भी सांसदों के बीच
क्या बात कर रहा है
सही बात कर रहा हूँ, वो भी सबके सामने
यकीन नहीं होता
पहले तो ये एकता सिर्फ खुद की
तनख्वा और भत्ते बढ़ाने के लिए दिखती थी,
वो भी परदे के पीछे
आज ये बदलाव कैसे आ गया?
संसद के ६०वी वर्षगाँठ पर
देश को फिर से “बनाने” का प्रोग्राम है
तभी तो गरिमा का प्रस्ताव भी पारित हो गया
यार अब ये गरिमा कहाँ से आ गयी?
कहीं ये वही गरिमा तो नहीं
जिसे २००८ में अमर सिंह संसद से बाहर फेंक कर आया था
हाँ भाई ये वही वाली है
और सांसदों ने ये भी कसम खायी है की
वो संसद की कार्यवाही में बाधा नहीं डालेंगे
ऐसा तो मुमकिन ही नहीं है
क्यूँ यार?
अगर संसद स्थगित नहीं होगी तो वहां बैठ कर हमारे संसद करेंगे क्या
उनके पास तो सिर्फ अपनी प्रगति की नीति और प्रस्ताव हैं
देश उन्नति और सेवा की बात करनी पड़ी तो वे अटपटा महसूस करेंगे
देश से तो उनका मीलों तक कोई नाता नहीं है भाई
संसद स्थगित, सांसद बाहर,
चाय-पकौड़े खाए, जनता के पैसे उड़ाए और संसद सत्र समाप्त!
६० सालों में लोकतंत्र में बदलाव आया है
सांसदों के व्यवहार और सोच में बदलाव आया है
देश सेवा की परिभाषा में बदलाव आया है
देश-उन्नति की बात अब बेमानी लगती है
दुआ करता हूँ की सांसदों में शर्म आये
अपनी नहीं तो संसद की लाज बचाएँ!!

